Monday 27 October 2014

जैव विविधता




बड़ी चिंता

Sun, 05 Oct 2014

हाल ही में व‌र्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड द्वारा जारी लिविंग प्लेनेट इंडेक्स में जैव विविधता के क्षरण को बड़ा खतरा बताया गया है। इस खतरे की व्यापकता, कारण और निवारण पर पेश है एक नजर:
तेजी से घटती जैव विविधता
* 1970 से 2010 के बीच के चालीस साल में जैव विविधता समग्र रूप से 52 फीसद कम हुई है।
स्थलीय प्रजातियां: चालीस साल में इन प्रजातियों में 39 फीसद कमी हुई है। इंसानों द्वारा कृषि व अन्य कार्यो में इस्तेमाल के चलते आवासीय संकट मुख्य कारण। शहरी विकास, ऊर्जा उत्पादन और शिकार अन्य प्रमुख वजहें।
ताजे जल की प्रजातियां: औसतन 76 फीसद कमी। आवास की कमी और रूप छोटे होना, प्रदूषण, और हमलावर प्रजातियां मुख्य वजहें।
समुद्री प्रजातियां: 39 फीसद की कमी। 1970 से 1985 तक तेज गिरावट, बाद में कुछ ठहराव, लेकिन कमी का दूसरा दौर शुरू। उष्णकटिबंधीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्र में सर्वाधिक कमी। कछुए, शार्क की कई प्रजातियां, बड़े प्रवासी समुद्री पक्षी पर सर्वाधिक संकट
* दक्षिणी अमेरिका और एशिया प्रशांत क्षेत्र में जीव प्रजातियों की संख्या में अप्रत्याशित कमी
प्रकृति का तेज दोहन
* इंसान आज जितना प्रकृति का उपभोग कर रहा है, उसे पूरा करने के लिए डेढ़ पृथ्वी की जरूरत है। हम अपनी प्राकृतिक पूंजी का जिस तरह से अपव्यय कर रहे हैं उससे भविष्य में जरूरतें पूरी करनी मुश्किल हो जाएंगी।
* कार्बन फुटप्रिंट कुल इकोलॉजिकल फुट प्रिंट (धरती की पारिस्थितिकी से इंसानी मांग) के आधे से अधिक हो गया है।
* ग्लोबल वाटर फुटप्रिंट में कृषि की हिस्सेदारी 92 फीसद हो गई है। बढ़ती इंसानी जल जरूरतें और जलवायु परिवर्तन पानी के संकट को और जटिल कर रहे हैं।
* बढ़ती इंसानी आबादी और उच्च प्रति व्यक्ति फुट प्रिंट का दोहरा असर हमारे पारिस्थितिकी संसाधनों पर गुणात्मक दबाव डालेंगे।
* उच्च आय वाले देशों की प्रति व्यक्ति इकोलॉजिकल फुट प्रिंट निम्न आय वाले देशों के मुकाबले पांच गुना अधिक
असर
* मानव कल्याण जल, उपजाऊ जमीन, मछली, लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों और परागण, पोषक चक्र और भूक्षरण नियंत्रण जैसे पारिस्थितिकी तंत्र पर आश्रित है।
* प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित गतिविधियों की प्लानिंग और प्रबंधन के केंद्र में पारिस्थितिकी तंत्र को रखकर ही आर्थिक और सामाजिक लाभ लिया जा सकता है।
* खाद्य, जल और ऊर्जा के अंतर-संबंधित मसले हम सभी को प्रभावित करते हैं।
* अधिसंख्य आबादी शहरों में रह रही है। विकासशील विश्व में शहरीकरण तेजी से हो रहा है।
क्या हैं उपाय
वन प्लेनेट सॉल्युशन यानी सभी को अपनी जरूरत और मांग धरती की क्षमता के मुताबिक ही करनी चाहिए। अकेली धरती के संसाधनों के उपभोग के लिए जरूरतों और मांगों का बेहतर चयन, प्रबंधन और साझेदारी की ओर उन्मुख होना होगा।
प्राकृतिक पूंजी का संरक्षण: क्षतिग्रस्त हुए पारिस्थितिकी तंत्र के पुन: दुरुस्त करने की जरूरत। प्राथमिकता वाले आवासों के नुकसान पर लगे रोक। संरक्षित क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से हो विस्तार
अच्छा पैदा करो: इनपुट और कचरे को करते हुए संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन हो। नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि की जाए।
चातुर्य पूर्ण उपभोग: निम्न फुट प्रिंट जीवनशैली द्वारा टिकाऊ ऊर्जा इस्तेमाल और स्वस्थ खाद्य उपभोग पद्धति को बढ़ावा मिले।
वित्तीय बहाव की दिशा में बदलाव: प्रकृति का मूल्य हो, पर्यावरण और सामाजिक लागत तय हो, संरक्षण को समर्थन और पुरस्कृत किया जाए, संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन और नवोन्मेष हो
न्यायोचित संसाधन प्रशासन: उपलब्ध संसाधनों की साझेदारी हो। उचित और पारिस्थितिकीय रूप से सूचित विकल्पों को अमल में लाया जाए। सफलता को जीडीपी से परे भी देखा जाए।

No comments: