Monday 27 October 2014

प्राकृतिक आपदाएं




सक्षम भारत का उदय

Fri, 17 Oct 2014

तूफान और तबाही पर्यायवाची हैं। इसलिए तूफान से टकराना आसान नहीं, लेकिन भारत अब ऐसा ही आत्मविश्वासी राष्ट्र है। इजरायली चिड़िया हुदहुद के नाम वाले ताजे तूफान से भारी क्षति हुई। 10 हजार करोड़ से ज्यादा की संपदा तहस-नहस हो गई। सड़क, संचार सहित सारी सेवाएं नष्ट हो गईं, लेकिन भारतीय मौसम विज्ञानियों, आपदा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों ने भयावह आपदा से संभावित जन-क्षति को बचाया है। लगभग 5 लोग ही विभिन्न कारणों से मारे गए हैं। लाखों लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने का कमाल प्रशंसनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री व अधिकारियों के साथ बैठक की। 1000 करोड़ की अंतरिम सहायता की घोषणा की है। इसके पहले जम्मू-कश्मीर में जल प्रलय जैसी स्थिति थी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के मुताबिक उनकी सरकार भी बह गई थी, लेकिन केंद्र सरकार व भारतीय आपदा प्रबंधन ने कमाल किया। 51 हजार लोग बाढ़ से बचाए गए। सेना ने अभिभावक जैसी पालनहार भूमिका निभाई। मोदी ने कश्मीरी अवाम का दिल जीता। प्राकृतिक आपदाओं से टकराना अब भारत के बाएं हाथ का खेल है। सारी दुनिया में भारत की छवि आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विकसित हुई है।
प्राकृतिक आपदाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन आधुनिक विज्ञान, तकनीक और राष्ट्रीय संकल्प के चलते उनके प्रभाव घटा देना असंभव नहीं। हुदहुद इसका ताजा उदाहरण है। जम्मू-कश्मीर की बाढ़ भी ताजी आपदा ही है। गए बरस भी तूफान आया था। इस साल आंध्र प्रदेश निशाना रहा तो 2013 में ओडिशा में प्रलय हुई। पानी की लहरें आकाश में पहुंची थीं। अपने रौद्र रूप के कारण उसे फेलिन कहा गया। फेलिन ओडिशा में आया था 2013 में, लेकिन इसके पहले ओडिशा में ही 1999 में भयानक तूफान साइक्लोन ने तबाही मचाई थी तब दस हजार लोग मारे गए थे। तभी प्राकृतिक आपदा पर एक हाई पावर कमेटी बनी। गुजरात के भूकंप के बाद भी एक समिति बन चुकी थी। समिति को आपदा प्रबंधन के संबंध में सुझाव देने थे। दसवीं पंचवर्षीय योजना में भी आपदा प्रबंधन का विशेष उल्लेख किया गया। 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम बना और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की व्यवस्था हुई। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं और संबंधित क्षेत्रों के मुख्यमंत्री सहित अन्य अनेक सदस्य। आपदा प्रबंधन पर सक्षम कानूनी संस्था और तकनीकी विकास का नतीजा था कि 2013 में फेलिन जैसे भयंकर तूफान के समय लाखों लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया।
भारत विशाल भू-क्षेत्र है। प्राकृतिक आपदाएं आती ही रहती हैं। हुदहुद आपदा की कार्रवाई के संदेश आशावादी और आत्मविश्वासी हैं। नरेंद्र मोदी ने जन और सत्ता के बीच सतत संवाद बढ़ाया है। आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक जन-शिक्षण पर पहल होनी चाहिए। 1971 से 1999 तक ओडिशा, आंध्र आदि क्षेत्र भयावह आपदाओं के शिकार हुए। 1971 में लगभग 10 हजार लोग मारे गए। 1972 में 260, 1976 में लगभग 100 और 1977 में 10 हजार से ऊपर जनहानि हुई। जन-धन की व्यापक हानि का सिलसिला 1999 तक चला। परिवर्तन दिखाई पड़ा 2013 में। बहुत कुछ खोकर हुदहुद से बचने की शक्ति प्राप्त हुई है, लेकिन इसी तूफानी वर्षा में यूपी में लगभग 17 लोग मारे गए हैं।
उत्तराखंड राज्य की प्राकृतिक आपदा आज भी सिहरन पैदा करती है। जल प्रवाह अचानक बढ़ा, पलक झपकते ही हजारों लोग डूब गए। ऐसी आपदा का पूर्वानुमान नहीं था। पहाड़ों पर जल प्रवाहों के रास्ते में अंधाधुंध निर्माण हुए। जल प्रवाह रोके गए। तमाम निर्माण कायरें को खतरनाक बताने वाली रिपोटर्ें भी थीं। आपदा प्रबंधन भी हुआ, लेकिन मारे गए लोगों की संख्या बहुत ज्यादा रही। तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष केअनुसार मरने वालों की संख्या 10 हजार से भी च्यादा थी, लेकिन सरकार ने 1000 के करीब ही जनहानि बताई। सच जो भी हो पर क्षति भयावह ही थी। देश आहत था। सारे देश के श्रद्धालु तीर्थयात्रा में थे। आपदा के समय भी राजनीतिक लाभ लेने के प्रयास हुए। जनमानस ने प्राकृतिक आपदा के साथ राजनीतिक आपदा भी झेली। बावजूद इसके सारा देश पीड़ितों व पीड़ित परिवारों के साथ खड़ा हुआ। न उत्तराखंड के पीड़ित अकेले थे, न आंध्र या ओडिशा के और न ही जम्मू-कश्मीर के ही। भारत लगातार मजबूत हुआ है। आपदा से बचने, लड़ने और फिर से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में जुट जाने की सांस्कृतिक व राजनीतिक शक्ति बढ़ी है।
प्राकृतिक आपदाओं का कैलेंडर नहीं होता। यहां बाढ़ और सूखा साथ-साथ आते हैं। वर्षा इस साल गच्चा दे गई। मौसम विज्ञानी पूर्वानुमान भी यही था। टिप्पणीकार सूखे को लेकर निराशाजनक आर्थिक टिप्पणियां कर रहे थे, लेकिन मोदी की सत्ता और जनता के साझे आत्मविश्वास से सूखा भयावह आपदा नहीं बना। खाद्य क्षेत्रों की मुद्रास्फीति दर घटी है और महंगाई भी। देश के अनेक राच्यों में बाढ़ भी आई। व्यवस्था में नि:संदेह खामियां भी थीं, लेकिन राष्ट्रीय आत्मविश्वास की बाढ़ में प्राकृतिक बाढ़ आपदा से निपटने में कोई कमी नहीं आई। जम्मू-कश्मीर की बाढ़ आपदा ने अलगाववादी तत्वों को भी भारत होने और भारत में होने का सही अर्थ समझाया है, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से जूझने के लिए भारतीय प्रशासन की क्षमता अभी भी आदेश देने तक ही सीमित दिखाई पड़ रही है। प्रशासनिक अधिकारी आपदा के दौरान भी चुनौतियों में नहीं डूबते। वे प्राय: तटस्थ और निरपेक्ष रहते हैं। शुभ लक्षण है कि केंद्र की नई सरकार की नीति और कामकाज का प्रभाव उन पर भी पड़ रहा है। भारत पहले से कहीं च्यादा लैस है हरेक चुनौती का सामना करने के लिए।
भारत का आत्मविश्वास पंख फैलाकर उड़ा है। राष्ट्रीय स्वाभिमान और आशावाद भी। आपदा प्रबंधन के साथ मंगल अभियान की कामयाबी ने लोकमंगल का वातावरण बनाया है। धरती ही नहीं अंतरिक्ष में भी भारत की प्रतिष्ठा है। भारत सिद्धांतहीन गठबंधन राजनीति से उबर चुका है। केंद्र अब लाचार और निरुपाय नहीं है। अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आत्मविश्वास से भरी पूरी सरकार है। राष्ट्रनीति और विदेशनीति में एकात्मकता है। भारत के बारे में विश्व दृष्टि बदल गई है। विज्ञान, तकनीक, मानविकी, दर्शन, संस्कृति और नेतृत्व सहित राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत की खास पहचान बनी है। दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष अब भारत की उपेक्षा नहीं करते। वे भारत से मैत्री और संवाद के लिए उत्सुक हैं। राष्ट्र प्राकृतिक आपदाओं व अन्य चुनौतियों से भी निपटने में सक्षम है। न धन की कमी है और न साधन या मानव संसाधन की। कमी पहले भी नहीं थी। सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की ही कमी थी। इसी से जन-विश्वास की कमी थी। जनविश्वास की कमी राष्ट्रीय विकास व पुनर्निर्माण में बाधक होती ही है। अब भारत का मन बदल रहा है। आत्मविश्वास बढ़ा है। राष्ट्र अपनी प्रकृति, संस्कृति और परंपरा में आधुनिक हो रहा है और आत्मनिर्भर भी। सक्षम और साम‌र्थ्यवान राष्ट्र होना ही भारत की नियति है।
[लेखक हृदयनारायण दीक्षित, उप्र विधान परिषद के सदस्य हैं]

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