Monday 27 October 2014

वायु प्रदूषण




प्रदूषण पर शोध

Mon, 13 Oct 2014 

दिवाली के मौके पर आतिशबाजी के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों का यह खुलासा चौंकाने वाला है कि इससे न केवल सांस की बीमारी बढ़ती है, बल्कि गठिया व हड्डियों के दर्द में भी इजाफा हो जाता है। संस्थान ने यह तय किया है कि इस बार इसी बात पर शोध किया जाएगा कि दिवाली पर पटाखे जलाने के कारण हवा में प्रदूषण का जो जहर घुलता है, उसका गठिया व हड्डी के मरीजों पर कितना असर पड़ता है। एम्स के विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक हुए शोध में यह पाया गया है कि वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 का स्तर अधिक होने पर गठिया के मरीजों की हालत ज्यादा खराब हो जाती है। चूंकि दिवाली में आतिशबाजी के कारण प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है, लिहाजा इस बार गठिया के मरीजों पर दिवाली में होने वाले प्रदूषण के असर पर शोध किया जाएगा।
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण भी गठिया की बीमारी के लिए जिम्मेदार कारक हैं। इस मामले में पिछले दो वर्षो से शोध चल रहा है। केंद्र सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से किए जा रहे देश में अपनी तरह के इस अनूठे शोध के तहत गठिया के 400 व 500 सामान्य व्यक्तियों पर अध्ययन किया जा रहा है। यह शोध रिपोर्ट वर्ष 2016 तक आएगी। दिल्ली में दिवाली सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार पर राजधानी सचमुच किसी दुल्हन की तरह सजाई-संवारी जाती है। लेकिन इस साज-सज्जा का एक स्याह पक्ष यह भी है कि दीपों के त्योहार के इस मौके पर दिल्ली में इतनी ज्यादा आतिशबाजी होती है कि कई बार तो दिवाली के अगले दिन तक पूरे वातावरण में प्रदूषण की धुंध सी छाई रहती है। यह प्रदूषण बीमार व्यक्तियों के लिए तो मुसीबत खड़ी करता ही है, स्वस्थ व्यक्ति को भी कम नुकसान नहीं पहुंचाता। यदि एम्स के शोध में यह बात सामने आती है कि प्रदूषण के कारण गठिया के रोगियों में इजाफा हो रहा है, तो यह मानना पड़ेगा कि दिवाली की आतिशबाजी असल में बीमारी बांटने का काम करती है। दिल्ली में पहले ही 75 लाख से अधिक वाहन वायु प्रदूषण की बड़ी वजह बने हुए हैं। ऐसे में दिवाली पर खुशी के नाम पर बेहिसाब आतिशबाजी का चलन बंद होना चाहिए। इससे बहुत ज्यादा नुकसान होता है।
[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]

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