Friday 26 September 2014

धूम्रपान जनित बीमारी




तंबाकू मुक्त दुनिया की ओर बढ़ने के लिए

सुभाष गाताडे, सामाजिक कार्यकर्ता

दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र, मगर एक ही मसले को लेकर उनकी अदालतें इतना विपरीत कैसे सोच सकती हैं? पहला मामला अमेरिका का है। धूम्रपान जनित बीमारियों के चलते गुजरे अपने पति की समस्या लेकर अदालत पहुंची अमेरिकी महिला सिंथिया रॉबिन्सन को पिछले दिनों 23 बिलियन डॉलर का मुआवजा मिला। उनका तर्क था कि तंबाकू का कारोबार करने वाली कंपनी ने इसके खतरों का ठीक से प्रचार नहीं किया था, जिसके चलते उसके पति माइकल जॉन्सन की 1996 में मृत्यु हुई। इससे बिल्कुल विपरीत अनुभव मुंबई के 64 वर्षीय दीपक कुमार का है। वह कस्टम विभाग के रिटायर्ड आयुक्त हैं। धूम्रपान के चलते कैंसर का शिकार हुए दीपक कुमार अपनी आवाज खो चुके हैं और इन दिनों गरदन में डाली गई ट्यूब से सांस लेने और नाक से डाली गई ट्यूब के जरिये खाना खाने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने साल 2008 में उपभोक्ता अदालत में इस बात को लेकर अर्जी पेश की कि सिगरेट कंपनियों ने उन्हें पहले से आगाह नहीं किया, जिसके चलते उन्हें कैंसर हुआ। लेकिन कंपनी ने मामले को तकनीकी चीजों में उलझा दिया, जैसे उन्होंने सिगरेट खरीदने की रसीद नहीं जमा की वगैरह और उनका मामला खारिज हो गया। दीपक कुमार का किस्सा अपवाद नहीं है। भारत में 27.5 करोड़ लोग तंबाकू का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में करते हैं और इससे जनित बीमारियों के चलते दस लाख लोग सालाना मरते हैं। अगर हम भारत के 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गुटखा पाबंदी का उदाहरण लें, तो इसे सरकार की प्रगतिशील नीयत का एक कदम माना जा सकता है। मगर बड़ी समस्या यह है कि बात इससे आगे नहीं बढ़ रही। इस साल भी बजट में सिगरेट पर कर बढ़ाकर उसे महंगा किया गया है, लेकिन शायद इतना काफी नहीं है। अब एक सोच यह सामने आ रही है कि अगर सरकार तंबाकू उत्पादों पर लगने वाले टैक्स को तीन सौ फीसदी बढ़ा दे, तो इससे बहुत अच्छे नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे भारतीय मूल के प्रोफेसर प्रभात झा और सर रिचर्ड पेटो के शोधपत्र से यही बात सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, अगर वैश्विक स्तर पर तंबाकू उत्पादों पर लगने वाले टैक्स तिगुने कर दिए जाएं, तो 20 करोड़ लोगों को कैंसर से बचाया जा सकता है। इससे कुछ  देशों में सिगरेट की कीमतें दोगुनी हो जाएंगी और सबसे सस्ती और सबसे महंगी सिगरेट के बीच कीमत का अंतर कम हो जाएगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस नीति का सबसे अधिक असर निम्न और मध्यम आय वाले मुल्कों में दिखाई देगा, जहां सस्ती सिगरेटों की काफी खपत है। इस नीति के उनके मुताबिक तीन फायदे हैं- एक, धूम्रपान करने वालों की संख्या में भारी कमी; दो, धूम्रपान से होने वाली मौतों में कमी और तीन, सरकारी आय में वृद्धि, पर क्या सरकार ऐसा कर सकेगी?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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