Friday 26 September 2014

पर्यावरण संरक्षण




वनों के लिए

Saturday,Jul 26,2014

जब बरसात आती है तो वन महोत्सव भी होता है..जब वन महोत्सव होता है तो पौधे रोपे जाते हैं। विभाग और समाज का स्पर्श पाने वाले कुछ सौभाग्यशाली पौधे कालांतर में पेड़ बनने की ओर अग्रसर होते हैं। जो पेड़ बन जाते हैं वे छाया देते हैं, जमीन पर पकड़ मजबूत करते हैं, हवा देते हैं और हरित आवरण को बढ़ाने में सहायक होते हैं। कुछ अभागे पौधे पेड़ बनना तो दूर की बात, पौधे भी नहीं रह पाते हैं। वन महोत्सव से जुड़ी यह पटकथा हर वर्ष लिखी जाती आई है। कथानक वही रहता है, पात्र भी वही रहते हैं और परिवेश गुजरा हुआ तो लगता है लेकिन अब भी बीत रहा प्रतीत होता है। जितने वन महोत्सव प्रदेश में मनाए गए हैं, जितने औषधीय पौधों की बात हर मंच और हर स्कूल से गूंजी है, वे वास्तव में पेड़ न भी सही, बड़े पौधों के रूप में भी परिवर्तित हो गए होते तो आज हरित आवरण अपनी बानगी आप होता। इस मंजर के बीच मुख्यमंत्री ने सोलन के क्वारग में अगर यह कहा है कि सरकार हर पौधे का हिसाब लेगी तो यह छोटी बात नहीं है। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री और सरकार भी इस बात से अवगत हैं कि पौधरोपण के बाद क्या होता है। मुख्यमंत्री की इस घोषणा का स्वागत किया जाना चाहिए और केवल विभागीय अधिकारी ही नहीं, कर्मचारियों और सामाजिक संगठनों, गैर सरकारी संस्थाओं को भी इससे सबक लेना चाहिए कि पौधा रोपने का मकसद केवल एक रस्म की अदायगी भर नहीं है। ये सरोकार सीधे पर्यावरण संरक्षण से जुड़ कर सुरक्षित वातावरण का निर्माण करने से संबद्ध हैं। जिस प्रकार वैश्रि्वक ताप बढ़ने की बात सामने आ रही है, जिस प्रकार नदियां अपनी राह भूल रही हैं, जिस प्रकार जंगल के साथ अमंगल हो रहा है, जिस प्रकार मौसम चक्र कई बार दुष्चक्र में फंसा प्रतीत होता है, उससे लगता है कि एक-एक पौधा कितना जरूरी है। वास्तव में ऐसे संदर्भो में उन अनाम बुजुर्गो को भी याद किया जाना चाहिए जिन्होंने हिमाचल प्रदेश के राजमार्गो के किनारे पौधे रोपे और वे पेड़ बन कर खड़े हैं। कांगड़ा जिले में तो देसी आम के पौधे न केवल छाया देते हैं बल्कि रुत आने पर पंथी को फलाहार का अवसर भी देते हैं। जिन्होंने ये पौधे रोपे थे वे शायद ही इनका लाभ ले पाए होंगे लेकिन यह अगली पीढ़ी को देन थी। यही यह पीढ़ी भी सोचे।
[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]

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